Sunday, 28 September 2025

My wanderings 164. Urdu Nazam 42. Raze hasrat

My Wanderings 164

Urdu Ghazal 42

Raze Hasrat

गर कुदरत ने हमारी ख्वाहिशो का ऐहतिराम किया होता
यह हादसा हमारी ज़िन्दगी के साथ कभी हुवा ना  होता

हम तो हरदम रहे किसी कुदरती मौजजे के मुन्तजिर
पर हमे मालूम ना था हम हो  जायेंगे रुसवा इस कदर 
काश हमने अपनी  हसरतौ  का  इखतिलाफ किया  होता
गर कुदरत ने हमारी ख्वाहिशो का एहतिराम किया होता
यह हादसा हमारी ज़िन्दगी के साथ कभी हुवा ना होता

हम तो हर बार रहे कुदरत की  सरगोशियो  के कायल
और मुकद्दर की गर्दिशो ने हमे हर दम किया है घायल
काश हमने इन पर इतना ऐतमाद नही किया   होता
गर कुदरत ने हमारी ख्वाहिशो का एहतिराम किया होता
यह हादसा हमारी ज़िन्दगी के साथ कभी हुवा ना  होता

हम खोदते रहे जमीन को खजाने की तलाश मे अकसर
भेच दी जब जमीन तो खजाना किसी ओरको हुवा मुयसर  
हमने जल्दी की हमेशा, कुछ ओर इन्तिज़ार किया होता
गर कुदरत ने हमारी ख्वाहिशो का एहतिराम  कियाहोता.     यह हादसा हमारी जिन्दगी के साथ कभी हुआ ना होता

शायद मुकद्दर की सख्ती ने हमे हर भार पामाल किया
दिलशिकस्ता होने परभी हमने किसी से सवाल न किया
काश हमने पहले से ही तदबीरू पे ऐतबार किया होता
गर कुदरत ने हमारी ख्वाहिशो का एहतिराम किया होता
यह हादिसा हमारी ज़िन्दगी के साथ कभी हुवा ना होता 

नाकामयाबी से लेकर नाकामयाबी तककामयाब होना हे
सिर्फ इन्सान कोअपना हौसला कभीपस्त नही करना है 
काश 'रमेश' तुमने यह पहले से ही ऐतराफ किया होता 
गर कुदरत ने हमारी ख्वाहिशो का एहतिराम किया होता
यह हादसा हमारी ज़िन्दगी के साथ कभी हुआ ना होता
                                                    रमेश कौल

No comments:

Post a Comment